Balaji Wafers Success Story in Hindi
आज हम Chandubhai Virani Ji और उनके भाइयों द्वारा बनाई गई कंपनी बालाजी वेफर्स (Balaji Wafers) जो चिप्स और नमकीन जैसे snacks के उत्पादक हैं आज हम उनके ही बारे में बात करेंगे चलिए तो,
Balaji Wafers आज के समय में हर एक दिल पर राज करती है और आपके आस पास की दूकान पर ये Balaji Wafers के Product जरूर मिलते होंगे, ये Company भी जीरो से शुरू हुई थी इसने भी अनेक परेशानियों से जूझ के आगे बढ़ना सीखा है, इसलिए ये कहानी हम आप लोगो के लिए लाएं हैं, आपको अपने जीवन में कुछ बड़ा करने के लिए Inspiration मिलेगा इसलिए हो सके तो आप हमारे लेख को पूरा आखिर तक पढ़ें।
Balaji Wafers चिप्स और नमकीन के तड़ाके दार स्वाद से लोगों का मन बहलाने वाले Chandubhai Virani Ji, जिन्होंने गरीबी मैं मेहनत करके और अपनी कंपनी को सफल बनाने के फैसले से ही इन्होंने Balaji Wafers को 2400 करोड़ की कंपनी बनाने तक के सफर में अनेक मुश्किलों का सामना किया,
पर उनसे जूझना इन्होंने कभी सीखा ही नहीं था और आगे बढ़ने की इनकी चाहत ने इनकी कंपनी Balaji Wafers को इस मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया कि ए कंपनी भारत की जानी मानी और सफल कंपनियों में से एक है।
Chandubhai Virani Ji का जीवन परिचय : यह कहानी शुरू होती है 1974 से जब Chandubhai Virani Ji का जन्म हुआ था उनका जन्म गुजरात के जामनगर जिले के धुन धोराजी नाम के एक छोटे से गांव में हुआ था , उनके पिता का नाम Popat Bhai Virani था जो कि पेशे से एक किसान थे।
बारिश की गंभीर समस्या से खेती को पानी ना मिलने के कारण Chandubhai Virani Ji के पिता को अनेक समस्या हुई तो उन्होंने खेत को बेच दिया, और उससे उन्हें ₹20,000 की राशि प्राप्त हुई और वह राशि उन्होंने अपने चारों बेटों को दे दी और कोई व्यवसाय शुरू करने को कहा।
तो Chandubhai Ji के भाइयों ने वैसा ही किया तो वह खेतों से जुड़ी हुई कृषि सामान और खाद जैसे व्यापार से शुरुआत की लेकिन वह काम सफल नहीं हो पाया,
और वंहा उनके पैसे भी लगभग डूब से गए थे, और उसके बाद वह सब नया काम जारी करने के लिए सब राजकोट आ गए, वहां उन्हें सिनेमा के कैंटीन में काम मिल गया, सिनेमा का मालिक उन भाइयों के काम से बहुत खुश रहा करता था, और उन्हें सिनेमा के कैंटीन का काम ठेके पर दे दिया, पर चार भाइयों के लिए एक काम करने से उनका गुजारा नहीं हो पा रहा था
इसलिए वह और उनके भाई बहुत से काम किया करते थे, जैसे कि Guard का काम, Ticket Counter पर बैठने को काम या फिर साफ सफाई का काम जैसे कई प्रकार के काम किया करते थे, और नए नए कामों को सीखा भी करते थे,
सिनेमा के कैंटीन का काम बहुत ही अच्छे से चलने लगा था वह लोगों को चिप्स ,सॉफ्ट ड्रिंक ,नमकीन बेचने लगे थे, काम अच्छे से चल रहा था, वे अपने व्यापार को पूरे दिल और दिमाग से करते थे, और उन्हें और उनके भाइयों को अपने काम के प्रति बहुत लगाव था, वे अपने काम की छोटी-छोटी बारीकियों को देख कर उनमें सुधार किया करते थे,
उनके कैंटीन में उन्होंने देखा की चिप्स की बिक्री ज्यादा हो रही है तो उन्होंने खुली हुई चिप्स को पैकेट में भरकर बेचने का सोचा और ऐसा करने से Chandubhai Virani ji को मुनाफा ज्यादा होने लगा था तो उन्होंने सोचा क्यों ना हम इसी व्यापार को जारी करना शुरू करें,
जब सन 1976 मैं हुई थी Chandubhai Ji खुली हुई चीज को पैकेट में भरकर बेचा करते थे पर चिप्स को खुद नहीं बनाया कर देते और उस कैंटीन को चलाते चलाते और ऐसे ही चिप्स सिनेमा के लोगों को बेच बेचकर उन्हें कई साल निकल गए,
फिर सन 1982 में Chandubhai Virani Ji ने अपने भाइयों से सलाह मुशायरा लेकर खुद से ही चिप्स बनाकर बेचने का फैसला लिया, और घर से ही आलू चिप्स बनाना शुरू कर दिया, चिप्स बनाने के लिए आलू छीलना काटना और उसे बनाना वह अकेले नहीं कर सकते थे, तो उन्होंने चिप्स बनाने के लिए एक अच्छा रसोईया रख लिया और उन्होंने अपने काम को जोरों शोरों से शुरू कर दिया,
वह घर से चिप्स बनाया करते थे और दुकानों में Supply किया करते थे, उनका एक ही मकसद था कि उन्हें अपनी Service अच्छी देनी है ताकि लोग हमारे Product को पसंद करें, और इससे वह अपना काम पूरी ईमानदारी से किया करते थे, और जो लोग इमानदारी और सच्ची लगन से काम करते हैं उनके जीवन में मुश्किलें तो आती ही है और इनके जीवन में भी आईं।
इनसे लोग सामान लेकर पैसों को महीनों तक अटका दिया करते थे और उसके बाद कई लोग भूलने का नाटक करके उन्हें पैसे दिया ही नहीं करते थे, इससे उन्हें काफी नुकसान हुआ करता था पर वह इस नुकसान से घबराए नहीं और अपने व्यापार को और भी तेजी से बढ़ाया। (Balaji Wafers Success Story in Hindi),
लोग इनके स्वादिष्ट चिप्स को पसंद किया करते थे, और ग्राहक की संख्या बढ़ती ही जा रही थी, तो दुकानदारों की चिप्स के लिए डिमांड भी कई गुना बढ़ने लगी थी, और पहले Chandubhai Virani Ji एक रिक्शे से दुकानों पर सामान पहुंचाया करते थे और ग्राहकों की डिमांड से उन्हें इतना मुनाफा हुआ कि उन्होंने एक टेंपो ले लिया, और उससे दुकान तक सामान पहुंचाने लगे थे,
उन्होंने देखा कि कई कंपनी जो चिप्स बनाने का काम किया करती थी, जो उनकी जल्द ही प्रतियोगी ब्रांड कंपनी होने वाली थी, उनके चिप्स बनाने का तरीका बिल्कुल अलग था वह मशीनों द्वारा काम किया करती थी और कम समय में ज्यादा उत्पादक किया करते थे तो इन्हें उनका ऐसा काम करना बहुत पसंद आया और इन्होंने भी सोचा कि आलू छीलने से लेकर धोना काटना और फिर उसने बनाना, ऐसे काम करना आसान नहीं होता है, तो उन्होंने कई सोच विचार करके मशीन लगाने का फैसला लिया,
Market में केवल 5 किलो आलू छीलने की क्षमता वाली मशीन मिल रही थी, तो उन्होंने आपने आर्डर पर एक आलू छीलने की मशीन जो कि 10 से 20 किलो आलू चीलने की छमता रखें ऐसी मशीन बनवाई।
और इन्होंने एक आलू काटने की मशीन भी अपने आर्डर पर बनवाई, और इन मशीनों को लगाकर उनकी उत्पादक क्षमता धीरे-धीरे बढ़ने लगी थी।
फिर सन 1990 तक कंपनी से कुछ ज्यादा मुनाफा नहीं हो पा रहा था, बिक्री तो अच्छी खासी हो रही थी पर मुनाफा कुछ खास नहीं हो पा रहा था, और उनके बड़े भाई दूसरे व्यवसाय में चले गए, पर Chandubhai Virani Ji को तो इसी में अपना भविष्य दिख रहा था, और Chandubhai Virani Ji इसी कंपनी को ही आगे बढ़ाना चाहते थे,
Balaji Wafers के लोगो नीले पीले कई रंगों के थे, पर 1990 तक पैकेजिंग पर ध्यान दिया और एक पैकेजिंग मशीन खरीदने का सोचा जिसकी कीमत 6 लाख रुपए थे, पर वह मशीन लोकल मशीनों में से एक थी जिसकी कोई भी गारंटी वारंटी नहीं थी, और ये मशीन जल्द ही खराब हो गई, पर कानून की सहायता से वह मशीन उन्होंने कंपनी को वापस तो कर दी पर काफी समय लग गया था, दो-तीन साल उनके बर्बाद ही गए थे, सन 1994 में एक जापान की पैकेजिंग मशीन खरीदी गई, और Balaji Wafers अपने स्वाद से ग्राहकों मैं अपनी जगह बना रखी थी।
2000 की शतक में ऑटोमेटिक प्लांट से 2000 किलो प्रति दिन उत्पादन होने लगी, और 2003 में इनकी नई पैकेजिंग मशीन 4000 किलो चिप्स की पैकेजिंग की क्षमता रखती थी, तब तक इनका व्यापार 25 करोड़ सालाना आय तक पहुंच चुका था,
फिर इन्होंने नमकीन बनाने का फैसला लिया और मार्केट में आलू भुजिया को उतारा जिसे लोगों ने खूब पसंद किया गया और उसे भी लोगों द्वारा बनवाया गया जब लोगों को आलू भुजिया पसंद आने लगी तो इन्होंने उसकी मशीन लगानी चाही।
और वह मशीन भारत में मिल ही नहीं रही थी तो इन्होंने ऑस्ट्रेलिया कि एक इंजीनियर से इस मशीन को बनवाया, और आलू भुजिया और कई वैरायटी के नमकीन का उत्पादन करने लगे जिससे उनके व्यापार में खूब बढ़ोतरी हुई और आगे बढ़ते ही गए और फिर इन्होंने सींग भुजिया, मटर आदि कई स्नैक्स के कई चीजों के उत्पादन करने लगे,
ऐसे ही कड़ी परिश्रम और अपनी मेहनत के बल पर Chandubhai Virani Ji ने बालाजी वेफर्स (Balaji Wafers) को ऐसे मुकाम तक पहुंचाया जिसका लोग खुबब देखते रहते हैं और ए काम करना हर किसी के लिए आसान नहीं होता है यह एक नई पीढ़ी के लिए एक उदाहरण बन कर सामने आए हैं,
इन्होंने दुनिया को ये साबित कर दिया कि भले ही किसी की जेब में पैसे हो या ना हो पर उसे हमेशा मंजिल छूने का हौसला रखना चाहिए और इनके हौसले और मेहनत से ए Balaji Wafers को 2400 करोड़ की कंपनी बना पाए,
Balaji Wafers को चलाने में उनके भाइयों की भी मदद थी और उन्होंने भी इस कंपनी को कड़ी मेहनत करके इतनी बुलंदियों तक पहुंचाया।
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